मंगलवार, 10 जनवरी 2012
"भाषणों की हकीकत "
कचहरी चौराहे पर मंगलवार दोपहर कुछ लोग इकट्ठे हो कर यहां के चुनावी माहौल पर चर्चा कर रहे थे। इनमे कुछ लोग ऐसे थे जो अखिलेश यादव के नेतृत्व में सपा को जीत दिला रहे थे। वहीँ कुछ युवक राजनीति में युवाओं की भागीदारी बढ़ने के पीछे राहुल का हाथ बता रहे थे। इन नौजवान युवको का कहना था कि राहुल के आने के बाद से राजनीति में युवा लोगों का रुझान बढ़ा है। कांग्रेस ने युवाओं को टिकट देने की शुरुआत की तो सूबे में मौजूद सभी पार्टियों ने युवाओं को अपनी पार्टी में मिलाना शुरू कर दिया।आज हर पार्टी के चुनावी अजेडे में युवाओं को रोजगार दिलाने और देश में मंहगाई को समाप्त करने की बातें शामिल कर ली गयी हैं।
इसी बीच राहुल के भाषण को लेकर बहस छिड़ गयी। चौराहे पर मौजूद कुछ लोगों को राहुल का भाषण बहुत पसंद आया, कुछ लोगों का कहना था की राहुल ने हर बार की तरह रटा रटाया बयान दिया। उनके बयान में कोई नयापन नहीं था। भाषण देते समय ऐसा लग रहा था की राहुल किसी की लिखी पंक्तियों को पढ़ रहे हैं।इनकी बातें सुनकर मेरे दिमाग में भी बिजली कौंधी की हाँ यार राहुल की जितनी भी सभाओं की कवरेज मैंने की है। उनमे राहुल ने हर जगह एक जैसा ही बयान दिया है, अगर कुछ पंक्तियों का हेर फेर कर दिया जाये तो ऐसा कुछ भी नहीं था जो राहुल ने पिछले दो साल में नया कहा हो।
गौर करने वाली बात है की युवा शक्ति का नेतृत्व करने का दम भरने वाले राहुल के पास जब अपने शब्द और अपना बयान नहीं है तो फिर वो युवा को किस तरह देश की दिशा बदलने में सहयोग करेंगे। राहुल और अखिलेश की चुनावी यात्रा का लाभ उनकी पार्टियों को हो ना हो उत्तर प्रदेश की जनता अब चुनावी भाषणों की हकीकत समझने लगी है।
शुक्रवार, 19 अगस्त 2011
"Dard har kisi ko hai"
बंद कमरे, बैठक और गाँव की चोपाल में भ्रष्टाचार मिटाने के तरीको पर बहस हो रही है.
बुद्दिजीवी इसे पब्लिक का सपोर्ट पाने की और असली मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश बता रहे हैं.
आम आदमी इसे मंहगाई, बेरोजगारी, गरीबी और भ्रष्टाचार से मुक्ति के रस्ते के रूप में देख रहा है.
मीडिया इसे बेहतर मसाला मान कर समाचार परोसने में लगा है.
किचेन से लेकर खरीदारी तक अन्ना के आन्दोलन का असर दिख रहा है.
बच्चे स्कूल जाने में हीलाहवाली कर रहे है, मम्मी खाना बनाने में, पापा आफिस जाने में.
ऐसे में बासी सब्जी बन चुके बुजुर्गों का मार्केट मूल्य बढ़ गया है.
हर मोहल्ले और गाँव में बुजुर्गों से उनके ज़माने के किस्से सुने जा रहे है,
इन तमाम चीजों के बीच दिल में एक टीस सी उठती है,
जो हर बार की तरह जुबान तक आकर दम तोड़ देती है,
मगर फुसफुसाहट के साथ इतना सुनने में आता है-'जाके पैर न फटी बिवाई सो का जाने पीर पराई'
ये बात कहने वाला अब कोई नहीं, हर किसी को दर्द का एहसास है. सभी बदलाव चाहते है,
मैं देश में अपेक्षित बदलाव और युवा शक्ति को विकास के अनंत पथ पर अग्रसारित होने की कामना करता हू,
हमारा आने वाला कल बारिश की घनघोर घटा के बाद निकले सूरज की तरह चमकदार होगा, उसमे चन्द्रमा की तरह दाग नहीं होगा...
शनिवार, 19 मार्च 2011
" बरेली की होली "
शुक्रवार, 18 मार्च 2011
"वो दो हजार "
ये गाना रिश्तों की असलियत को उजागर करता है। । यह भी पता चलता है की पैसे की अहमियत कितनी ज्यादा है॥ हम बेहतर जानते हैं की आज के भौतिकवादी युग में पैसा हर किसी के लिए अमूल्य चीज हो गयी है.
हो भी क्यों ना, एक रूपया कम होने पर दुकानदार सामान देने और गाड़ी वाला आगे ले जाने से मना कर देता है। ऐसे में अगर बात दो हजार रुपयों की हो, पैसे देने वाला पुराने ज़माने की फिल्मो के लाला की तरह हो, फिर उससे पैसे निकलवा पाना भी bahut मुस्किल kaam है।
जनाब कुछ इसी तरह की उधेड़ बुन में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पीजेबीसी के 61 स्टुडेंट्स है, जो दो साल पहले जमा की गयी कासन मनी के लिए डिपार्टमेंट के चक्कर लगा रहे है। बाबू को फ़ोन करने पर जवाब मिलता है आप का पैसा जल्दी ही मिल जायेगा दस्तखत होना बाकी है लेकिन बाबू कोई टाइम नहीं।
उसकी इन हरकतों ले तंग आये हमारे एक मित्र का कहना है- हम केवल इसी आश में जिन्दा हैं कि हमारे हिस्से के वो 2000 रुपये जल्द ही मिलेंगे जिन्हें २०१० में देने का वडा किया गया था । उनका कहना है कि बिना 2000 हजार लिए मर गए , फिर उनकी आत्मा भटकती रहेगी, वो भी सेंटर encharge के आवास के आस - पास । हाय रे वो २००० हजार रुपये जो न ही चैन ले जीने देते हैं न मरने.....
रविवार, 24 अक्तूबर 2010
"इंसानी आक्टोपस "
सोमवार, 21 जून 2010
खामोश दिल
रूहेल खंड डिपो की जिस गाड़ी की वजह से टक्कर हुई उसके ड्राइवर का कहना है कि गाड़ी का ब्रेक फेल हो गया था। इस वजह से स्लोप से उतरते समय वह गाड़ी कन्ट्रोल नहीं कर सका और आगे जा रही डीसीएम से जा भिंड़ा। उसके बाद डीसीएम ने ट्रैक्टर में टक्कर मारी, ट्रैक्टर ने आल्टो में , आल्टो ने वैगन आर में एक-एक कर लगातार पांच गाड़ियाँ आपस में भिंड़ गईं। इस मंजर को देखकर बस के ड्राइवर ने घबराहट में अपनी गाड़ी लेफ्ट साइड में मोड़ दी। जिसकी वजह से लेफ्ट में बाइक सवार दो लोग उसकी चपेट में आ गए। वे बस और दीवार के बीच में फंस गए। उनकी चीखों से आस पास के घरों में गर्मी से राहत पाने के लिए छिपे लोग भी बाहर आ गए। इतनी तेज और कड़क घूप में भी लोग छतों और पेड़ों पर चढ़कर इन गाड़ियों के नीचे फंसे लोगों को तड़पते देख रहे थे। गिने चुने दस लोग थे जो फंसे हुए लोगों को निकालने में लगे हुए थे। हाथों और रस्सी का जोर लगाकरगाड़ी को तिरछा करके फंसे हुए लोगों को निकलने की बहुत कोशिश की गई मगर बस के नीचे फंसे हुए लोग नहीं निकल पाए। फंसे हुए जिन लोगों के शरीर में थोड़ी बहुत हरकत हो रही थी। आधे घंटे बाद वह भी बंद हो गई।
आखिरकार क्रेन मंगाई गई और उसमें फंसाकर बस को आगे खींचा गया। तब जाकर उसके नीचे फंसे लोग निकले। घायलों को एंबुलेंस में बिठाकर पास के एक नर्सिंग होम में ले जाया गया। जहां घायलों और उनके परिवार वालो की चीख पुकार से पूरा वार्ड कराह रहा था। मैं भी इन सारी घटनाओं के बीच मौजूद था। हर दर्द, हर चीख, हर पुकार को देख और सुन रहा था, उसे महसूस कर रहा था। इतने सब के बाद भी मेरी आंखें नम नहीं हुई। कलेजे में इनके लिए कुछ न कर पाने की टीस भी नहीं उठी। मैं पूरी तरह खामोश था। एक मशीन की तरह अपना काम किए जा रहा था। रात में सोते समय दिल से एक आवाज निकली अब तू भी दुनियां के प्रोफेशनल लोगों में शामिल हो चुका है। जिनके लिए अपने काम से इतर किसी चीज से कोई रिश्ता रखना बेमानी होता है।