सोमवार, 21 जून 2010

खामोश दिल

इतवार को बरेली शहर में चौपुला ओवर ब्रिज के पास एक-एक कर पांच गाड़ियां आपस में भिड़ीं। इस हादसे में कुल दो लोगों की जान गई और सात लोग घायल हो गए। गाड़ियों की भिड़त का मंजर इतना खतरनाक था कि इसे देखने के लिए हजारों की भीड़ इकट्ठी हो गई। वहां मौजूद हर किसी का बगल वाले से एक ही सवाल था। एक्सीडेंट कैसे हुआ, अंदर कितने लोग फंसे हैं। बस के नीचे फंसी बाइक को देखकर पूछता, यह बाइक किसकी है। बस और दीवार के बीच में फंसे इस दो लोगों को किसी तरह निकालो नहीं तो वे मर जाएंगे। इस हादसे की वजह से पूरी रोड जाम हो गई थी। लोगों ने पुलिस कन्ट्रोल रूम फोन करके सूचना दी. उसके आधे घंटे बाद पहुंची पुलिस की गाड़ी से निकले जवान पब्लिक की तरह तमाशा देख रहे थे। भीड़ में कुछ ही लोग थे। जिनके दिल ने उन मरने वालों को बचाने के लिए आगे बढ़ने की इजाजत दी थी. बाकी लोगों के दिल पत्थर के थे। उनके अंदर उत्सुकता थी लेकिन अपने सही सलामत हाथों से किसी की जान बचा लेने का ख्याल नहीं था।
रूहेल खंड डिपो की जिस गाड़ी की वजह से टक्कर हुई उसके ड्राइवर का कहना है कि गाड़ी का ब्रेक फेल हो गया था। इस वजह से स्लोप से उतरते समय वह गाड़ी कन्ट्रोल नहीं कर सका और आगे जा रही डीसीएम से जा भिंड़ा। उसके बाद डीसीएम ने ट्रैक्टर में टक्कर मारी, ट्रैक्टर ने आल्टो में , आल्टो ने वैगन आर में एक-एक कर लगातार पांच गाड़ियाँ आपस में भिंड़ गईं। इस मंजर को देखकर बस के ड्राइवर ने घबराहट में अपनी गाड़ी लेफ्ट साइड में मोड़ दी। जिसकी वजह से लेफ्ट में बाइक सवार दो लोग उसकी चपेट में आ गए। वे बस और दीवार के बीच में फंस गए। उनकी चीखों से आस पास के घरों में गर्मी से राहत पाने के लिए छिपे लोग भी बाहर आ गए। इतनी तेज और कड़क घूप में भी लोग छतों और पेड़ों पर चढ़कर इन गाड़ियों के नीचे फंसे लोगों को तड़पते देख रहे थे। गिने चुने दस लोग थे जो फंसे हुए लोगों को निकालने में लगे हुए थे। हाथों और रस्सी का जोर लगाकरगाड़ी को तिरछा करके फंसे हुए लोगों को निकलने की बहुत कोशिश की गई मगर बस के नीचे फंसे हुए लोग नहीं निकल पाए। फंसे हुए जिन लोगों के शरीर में थोड़ी बहुत हरकत हो रही थी। आधे घंटे बाद वह भी बंद हो गई।
आखिरकार क्रेन मंगाई गई और उसमें फंसाकर बस को आगे खींचा गया। तब जाकर उसके नीचे फंसे लोग निकले। घायलों को एंबुलेंस में बिठाकर पास के एक नर्सिंग होम में ले जाया गया। जहां घायलों और उनके परिवार वालो की चीख पुकार से पूरा वार्ड कराह रहा था। मैं भी इन सारी घटनाओं के बीच मौजूद था। हर दर्द, हर चीख, हर पुकार को देख और सुन रहा था, उसे महसूस कर रहा था। इतने सब के बाद भी मेरी आंखें नम नहीं हुई। कलेजे में इनके लिए कुछ न कर पाने की टीस भी नहीं उठी। मैं पूरी तरह खामोश था। एक मशीन की तरह अपना काम किए जा रहा था। रात में सोते समय दिल से एक आवाज निकली अब तू भी दुनियां के प्रोफेशनल लोगों में शामिल हो चुका है। जिनके लिए अपने काम से इतर किसी चीज से कोई रिश्ता रखना बेमानी होता है।