रविवार, 24 अक्तूबर 2010

"इंसानी आक्टोपस "

दुनिया के इस बाजार में हर कोई बिक रहा है.
फर्क इतना है कुछ घरों के अन्दर बिक रहे है, तो कुछ सरे राह.
मंजिल सबकी एक है, ज्यादा से ज्यादा खून चूसकर पैसे इकट्ठा करना.
ज्यादा से ज्यादा जिश्म का दिखावा करके पॉपुलर होना.
लाशों का ढ़ेर लगा हो कदमों के नीचे किसी को गम नहीं,
उन्हें पता है कि लाशें तो हर रोज जलती है, मगर वो लाशों के ढ़ेर पर खड़े है अर्थात वो जिन्दा है.
दिल तो हर रोज टूटता है, कभी बीबी की डांट पर तो कभी बॉस की झिड़की पर.
मगर असली दिल तो तब टूटता है, जब रोने का जी चाहे और आंखे पथरा जाएं.
कुछ इसी तरह रोने का मन होता है, जब दुनिया के दस्तूर की आड़ में लोग धोखा देकर मुस्कुराते है.
सर्वाइवल आॉफ दि फिटेस्ट के नाम पर मुस्कुराकर लहू चूसते हैं....
शायद इसीलिए इस दुनियां में रीयल आक्टोपस और भेड़िए खत्म होते जा रहे है.
उनकी जगह इंसान रूपी आक्टोपस और भेड़ियों ने ले ली है.

सोमवार, 21 जून 2010

खामोश दिल

इतवार को बरेली शहर में चौपुला ओवर ब्रिज के पास एक-एक कर पांच गाड़ियां आपस में भिड़ीं। इस हादसे में कुल दो लोगों की जान गई और सात लोग घायल हो गए। गाड़ियों की भिड़त का मंजर इतना खतरनाक था कि इसे देखने के लिए हजारों की भीड़ इकट्ठी हो गई। वहां मौजूद हर किसी का बगल वाले से एक ही सवाल था। एक्सीडेंट कैसे हुआ, अंदर कितने लोग फंसे हैं। बस के नीचे फंसी बाइक को देखकर पूछता, यह बाइक किसकी है। बस और दीवार के बीच में फंसे इस दो लोगों को किसी तरह निकालो नहीं तो वे मर जाएंगे। इस हादसे की वजह से पूरी रोड जाम हो गई थी। लोगों ने पुलिस कन्ट्रोल रूम फोन करके सूचना दी. उसके आधे घंटे बाद पहुंची पुलिस की गाड़ी से निकले जवान पब्लिक की तरह तमाशा देख रहे थे। भीड़ में कुछ ही लोग थे। जिनके दिल ने उन मरने वालों को बचाने के लिए आगे बढ़ने की इजाजत दी थी. बाकी लोगों के दिल पत्थर के थे। उनके अंदर उत्सुकता थी लेकिन अपने सही सलामत हाथों से किसी की जान बचा लेने का ख्याल नहीं था।
रूहेल खंड डिपो की जिस गाड़ी की वजह से टक्कर हुई उसके ड्राइवर का कहना है कि गाड़ी का ब्रेक फेल हो गया था। इस वजह से स्लोप से उतरते समय वह गाड़ी कन्ट्रोल नहीं कर सका और आगे जा रही डीसीएम से जा भिंड़ा। उसके बाद डीसीएम ने ट्रैक्टर में टक्कर मारी, ट्रैक्टर ने आल्टो में , आल्टो ने वैगन आर में एक-एक कर लगातार पांच गाड़ियाँ आपस में भिंड़ गईं। इस मंजर को देखकर बस के ड्राइवर ने घबराहट में अपनी गाड़ी लेफ्ट साइड में मोड़ दी। जिसकी वजह से लेफ्ट में बाइक सवार दो लोग उसकी चपेट में आ गए। वे बस और दीवार के बीच में फंस गए। उनकी चीखों से आस पास के घरों में गर्मी से राहत पाने के लिए छिपे लोग भी बाहर आ गए। इतनी तेज और कड़क घूप में भी लोग छतों और पेड़ों पर चढ़कर इन गाड़ियों के नीचे फंसे लोगों को तड़पते देख रहे थे। गिने चुने दस लोग थे जो फंसे हुए लोगों को निकालने में लगे हुए थे। हाथों और रस्सी का जोर लगाकरगाड़ी को तिरछा करके फंसे हुए लोगों को निकलने की बहुत कोशिश की गई मगर बस के नीचे फंसे हुए लोग नहीं निकल पाए। फंसे हुए जिन लोगों के शरीर में थोड़ी बहुत हरकत हो रही थी। आधे घंटे बाद वह भी बंद हो गई।
आखिरकार क्रेन मंगाई गई और उसमें फंसाकर बस को आगे खींचा गया। तब जाकर उसके नीचे फंसे लोग निकले। घायलों को एंबुलेंस में बिठाकर पास के एक नर्सिंग होम में ले जाया गया। जहां घायलों और उनके परिवार वालो की चीख पुकार से पूरा वार्ड कराह रहा था। मैं भी इन सारी घटनाओं के बीच मौजूद था। हर दर्द, हर चीख, हर पुकार को देख और सुन रहा था, उसे महसूस कर रहा था। इतने सब के बाद भी मेरी आंखें नम नहीं हुई। कलेजे में इनके लिए कुछ न कर पाने की टीस भी नहीं उठी। मैं पूरी तरह खामोश था। एक मशीन की तरह अपना काम किए जा रहा था। रात में सोते समय दिल से एक आवाज निकली अब तू भी दुनियां के प्रोफेशनल लोगों में शामिल हो चुका है। जिनके लिए अपने काम से इतर किसी चीज से कोई रिश्ता रखना बेमानी होता है।

मंगलवार, 18 मई 2010

अपना शहर

आप महीनों बाद अपने शहर की सड़कों पर चला। ऐसा लगा जैसे बरसों बाद मां के आंचल की घनी छांव नसीब हुई है। सब कुछ भूलकर मैं चैन की नींद सोया। आंखें खुलने के बाद एक अनोखा तेज और स्फूर्ति अपने अंदर महसूस हुई। कदमों में मीलों चलकर थकने का एहसास नहीं था । आंखों में नई चमक थी। पेड़ों की पत्तियों और पंक्षियों के कलरव में नई ताजगी नया आकर्षण था। इतना मनोहारी दृश्य इससे पहले देखा नहीं या मेरी आंखों ने देख कर अनदेखा कर दिया था पता नहीं, मगर सच में आज अपने शहर में घूमने का एहसास शब्दों में बयां कर पाने में खुद को असफल महसूस कर रहा हूं......अपने शहर का अपनापन दुबारा पेट की खातिर शरहद को पार न करने की याचना कर रहा है। मगर हर बार की तरह इस बार भी मैं उसे जल्दी ही वापस आने का भरोसा दिलाकर निकल रहा हूं। मुझे पता है, वह मान जाएगा। मेरे जाने के बाद रोएगा, पेड़ की डालों से , पंक्षियों से मेरे साथ गुजारे गए पलों की यादें बांटेगा। तब तक गांव की तरफ आने वाली पगडंडी पर अपनी पलकें बिछाए रखेगा, जब तक मैं दुबारा उससे मिलने अपने गांव अपने शहर नहीं आ जाता॥

एहसास

बंद कमरे की घुटन में भी सांसों को तेरे आने का एहसास था। चारदीवारी के हर रंग में तेरा हंसता चेहरा दिखता था। जब मेरे बाप के गरीब होने की सजा मुझे बंद कमरे में दी गई, तब अपनी मौत से ज्यादा तुझे खोने का एहसास था। मैं गरीब की बेटी थी, इसलिए मुझे जलाया गया। मगर तेरा क्या कसूर था, जो पैदा होने से पहले ही मेरी कोख में तुझे जला दिया गया।
हर रोज पिट कर, ताने सहकर, तुझे जिन्दा ऱखा, क्योंकि तेरी आहट में अपनी नई जिन्दगी का एहसास नजर आया था। मुझे जलाया गया, मुझे सताया गया, मगर इन सारे दुखों से हटकर मेरी कोख में तेरे आने का एहसास था। तभी तो मैने उपर जाकर भगवान से पूछा था, कलेजा ठण्ढ़ा हो गया......वो घंटों चुप रहने के बाद बोला था, तेरी तरह अब मैं भी मजबूर हो चुका हूं। उसकी आवाज में भी एक मां की तड़प और इंसानियत का एहसास था..............

सोमवार, 17 मई 2010

अपना शहर

आज अपने शहर की सड़कों पर चलते हुए जो शुकून र एहसास हुआ, वो अब से पहले कभी नहीं हुआ था। ऐसा लगा जैसे बरसों बाद मुझे मां का आंचल मिला हो। अपने सारे दर्द सारे गम भूलकर मैं चैन नींद सो रहा हूं। तभी िकसी सी आहट ने उसके आंचल की छांव को मुझसे दूर कर दिया।

रविवार, 14 फ़रवरी 2010

तेरी याद

दुनियां में शायद ही ऐसा कोई शख्स हो जिसने कभी किसी से प्यार न किया हो ! प्यार करने वाला अपने जिन्दगी के हर हसीन, यादगार, खुशनुमा और गमगीन मौके पर अपने उस प्यार को याद करता है। अपने प्यार को याद करके एक पल के लिए वो दुनियां के बीच रहते हुए भी खुद को अकेला महसूस करता है। यह अकेलापन खुशी और गम दोनों साथ लेकर आता है। खुशी तब मिलता है, जब आशिक अपनी दोनों आंखें बंद करके अपने प्यार को अपने सबसे करीब,यहां तक की अपनी सांसों में महसूस करता है और गम तब होता है, जब वो अपनी आंखे खोलता है और खुद को सारी दुनियां के बीच अपने प्यार के बिना पाता है।
मित्रों प्यार के इस खट्टे मीठे एहसास का अपना एक अलग ही मजा होता है। इस बार वैलेनटाइन डे के दिन मेरी मुलाकात कई ऐसे आशिकों से हुई, जिन्होंने अपना पिछला वैलेनटाइन डे अपने वैलेनटाइन के साथ मनाया था। मगर इस बार दोनों एक दूसरे से दूर थे। लेकिन इन दूरियों के बावजूद भी उनका प्यार कहीं से कम नहीं हुआ था। एक तरफ मोबाइल पर पल्स रेट बढ़ती जा रही थी, दूसरी तरफ इन आशिकों के चेहरे के गंगा, यमुना की तरह आंखों से आंसू निकल रहे थे। दिल के जज्बात बयां करते समय इनके चेहरे के भाव सच में दिल को िपघला देने वाले थे। शुक्र है, इस मोबाइल का जिसने दूरियां मिटा दीं और रिलायंस की भाषा में दुनियां को मुट्ठी में कर लिया।
इन आशिकों के जज्बात और यादों की तरन्नुम ने मेरी कलम को भी धार दे डाली। मुझे भी अपना पुराना प्यार याद आ गया। बस फिर क्या था, मैने भी अपना टिपैया यंत्र उठाया और उनकी याद में एक कविता लिख डाली। पेश है आपके सामने वो कविता जिसका शीर्षक है-
तेरी याद
जिन्दगी में हर पल वो मेरे साथ रहता है,
यादों में ही नहीं वो मेरी सांसों में भी रहता है।
उसकी याद में गिरते हैं,जब भी मेरी आंख से आंसू,
वो नजर में ही नहीं, मेरे आंसुओं में भी दिखता है।
कल तक वो मेरे जीने का सबब था,
लेकिन आज वो जिन्दगी से कुछ अधिक लगता है।
सपनों में जुदा होकर मौत प्यारी लगती है,
मुलाकात की एक ख्वाहिश में जिन्दगी का भरम लगता है।
उसकी खामोशी मुझे घुटन सी लगती है,
उसका हंसना मुझे एक नया जीवन लगता है।
जब भी चलती हैं, ये ठण्ढ़ी हवाएं,
उसका आंचल हले से ही सही,पर मुझे ढ़कता है।
जब वो रोती है, मुझे याद करके,
उसे क्या पता, दूर होकर भी मेरा दिल, उसके पास धड़कता है।
मुझे इन शब्दों में एक चेहरा नजर आता है,
तन्हाई में उसकी यादों के साथ अपने सपनों का घर नजर आता है।

सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

काश ! मैं भी इसी दिन पैदा होता

हमारे भारत की बढ़ती जनसंख्या नें पूरे विश्व की मर्दानगी पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। ऐसा लगता है कि यहां के लोगों को भगवान ने केवल बच्चे पैदा करने के लिए ही बनाया है। इनकी बच्चा पैदा करने की रफ्तार के आगे अमेरिका, रूस और चीन जैसी महाशक्तियां भी नतमस्तक दिखती हैं। जितनी तेजी के साथ हमारे देश की जनसंख्या बढ़ रही है, उतनी किसी अन्य देश की नहीं। कुछ सोशल वेबसाइटों का अध्ययन करने पर पता चला है कि हमारे देश में सबसे अधिक जन्मदिन फरवरी महीने में मनाए जाते हैं। फरवरी महीने में आरकुट जैसी लोकप्रिय वेबसाइटों से जुड़े लोगों को इस दिन ढ़ेरों शुभकामना संदेश भेजने पड़ते हैं।
14 फरवरी यानी वैलेनटाइन डे युवाओं के लिए सबसे खास दिन होता है। अधिकतर युवाओं की प्रोफाइल में यही डेट जन्मदिन के रुप में दर्ज होती है। लेकिन पिछले दो एक साल से इसमें विस्तार भी देखा गया है। क्योंकि अब ढ़लती उम्र के लोग भी इसमें शामिल होने लगे हैं। कुछ बुजुर्ग लोगों का जन्ममदिन और शादी की सालगिरह भी अब इसी दिन मनाई जाती है। मेरे पड़ोस में एक चाचा जी रहते हैं। एक दिन सुबह अचानक वो मेरे घर आ टपके और कहने लगे बेटा ! आज रात का भोजन हमारे यहां करना है। मैने कहा वो सब तो ठीक है चाचाजी । पर ये बताएं आज कुछ विशेष है, क्या । वे बोले हां बेटा, आज मेरा जन्मदिन है और आज ही के दिन हमारी शादी भी हुई थी। मैने कहा लेकिन चाचाजी अभी पिछले साल तो आपने नवंबर में अपनी शादी की सालगिरह मनाई थी। इस बार डेट बदल कैसे गई। उन्होंने नजरें झुकाकर सकुचाते हुए कहा, बेटा तुम्हारी चाची का विशेष आग्रह था कि इसी दिन हम अपनी शादी की सालगिरह और जन्मदिन मनाएं । सो हमने भी स्वीकार कर लिया। फरवरी के इस खास दिन, देश के हर घर में, एक दो बच्चों का जन्मदिन जरूर मनाया जाता है। ये आंकड़े लिखित रुप में हम आरकुट जैसी लोकप्रिय वेबसाइट पर देख सकते हैं। जी हां फरवरी माह की 14 तारीख को आरकुट पर अचानक से ही जन्मदिन वालों की भीड़ लग जाती है।
जहां तक युवाओं की बात है तो देश के अधिकतर माता पिता को यह भी याद नहीं रहता कि उनका बेटा 14 फरवरी के दिन ही पैदा हुआ था। ये अलग बात है कि उस दिन उसके सजने संवरने और दोस्तों के घर आने तथा होटलों और रेस्टोरेन्ट में पार्टी होने की बात सुननने पर वो भी इस सत्य को स्वीकार करने पर मजबूर हो जाते हैं। मेरे खुद के मित्रों में लगभग दस लोग ऐसे हैं जिनका जन्मदिन 14 फरवरी को नहीं है लेकिन पिछले कई सालों से वो इसी डेट पर अपना जन्मदिन मना रहे हैं। ये अलग बात है कि प्रत्येक जन्मदिन पर उनके साथ एक नया और विशेष चेहरा देखा जाता है। मेरे एक मित्र को उसके पिछले जन्मदिन पर ढ़ेरों गिफ्ट मिले। उसने कहा यार ! ये तो बहुत बढ़िया बिजनेस है। जन्मदिन के अवसर पर मिले गिफ्ट के कारण मुझे साल भर डायरी और पेन जैसै महत्वपूर्ण चीजों के साथ-साथ जरूरत के अन्य कई सामान खरीदने नहीं पड़ते। वैलेनटाइन डे को पैदा होने वाले अपने मित्रों की लिस्ट बढ़ती देख मैने भी चार दिन पहले से ही लोगों को जन्मदिन की अग्रिम बधाईयां देनी शुरु कर दी है। साथ ही अपने मित्रों के मन में उठने वाले ज्वार भाटा को देखते हुए मेरे मन में भी बार - बार यह विचार आ रहा है कि काश ! मैं भी इसी दिन पैदा हुआ होता।