बंद कमरे की घुटन में भी सांसों को तेरे आने का एहसास था। चारदीवारी के हर रंग में तेरा हंसता चेहरा दिखता था। जब मेरे बाप के गरीब होने की सजा मुझे बंद कमरे में दी गई, तब अपनी मौत से ज्यादा तुझे खोने का एहसास था। मैं गरीब की बेटी थी, इसलिए मुझे जलाया गया। मगर तेरा क्या कसूर था, जो पैदा होने से पहले ही मेरी कोख में तुझे जला दिया गया।
हर रोज पिट कर, ताने सहकर, तुझे जिन्दा ऱखा, क्योंकि तेरी आहट में अपनी नई जिन्दगी का एहसास नजर आया था। मुझे जलाया गया, मुझे सताया गया, मगर इन सारे दुखों से हटकर मेरी कोख में तेरे आने का एहसास था। तभी तो मैने उपर जाकर भगवान से पूछा था, कलेजा ठण्ढ़ा हो गया......वो घंटों चुप रहने के बाद बोला था, तेरी तरह अब मैं भी मजबूर हो चुका हूं। उसकी आवाज में भी एक मां की तड़प और इंसानियत का एहसास था..............
मंगलवार, 18 मई 2010
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें