सोमवार, 17 मई 2010

अपना शहर

आज अपने शहर की सड़कों पर चलते हुए जो शुकून र एहसास हुआ, वो अब से पहले कभी नहीं हुआ था। ऐसा लगा जैसे बरसों बाद मुझे मां का आंचल मिला हो। अपने सारे दर्द सारे गम भूलकर मैं चैन नींद सो रहा हूं। तभी िकसी सी आहट ने उसके आंचल की छांव को मुझसे दूर कर दिया।

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