शनिवार, 14 मार्च 2009

"रबिवार की सुबह का सच"

रबिवार को सुबह उठते ही कमरे में झाड़ू लगाने के साथ-साथ कपड़े धोने का काम सर पर सवार दिखता है।इस दिन ब्यक्ति ठीक से सोना चाहता है मगर सो भी नहीं पाता,मस्ती करना चाहता है मगर वह भी नहीं कर पाता क्योंकि इसी दिन दोस्तों के आने का वक्त होता है.।दोस्त भी ऐसे कि खाने पर कई प्रकार के ब्यंजनों की फर्माइश करके आते हैं।ऱबिवार होने के कारण इन्कार भी नहीं कर सकते हैं,मजबूरन आपको वह करना पड़ेगा जो दोस्तों की इच्छा है।इसी दिन पेपर वाले,दूध वाले,जमादार और मकान मालिक भी पधारते हैं।
यह दिन हर नौकरी वाले के लिए दुखदायी होता है और हर शादीशुदा के लिए किसी सजा से कम नहीं होता है,क्योंकि बीवी इसी दिन शापिंग लिस्ट के साथ शापिंग की तैयारी में होती है।वह घूमती कम हैं सामान ज्यादा खरीदती हैं।पति बेचारा कूली की तरह सामान ढ़ोने का काम करता है।भूले से भी अगर मुंह से ‘बस करो’ निकल गया तो पति की सामत है।अब उसे घंटों भाषण सुनना पड़ेगा,उपर से आज के खाने का मेन्यू खराब हुआ समझो।अव्वल तो श्रीमती जी खाना बनाने वाली नहीं और अगर बनाती भी हैँ तो तहरी के अलावा कुछ और खाने को नहीं मिलने वाला।रबिवार का शेष समय उन्हें मनाने में चला जायेगा।अब भला कौन पति इतना बड़ा संकट अपने सर लेना चाहेगा,कौन अपना दिन खराब करना चाहेगा।
दूसरी तरफ कुछ का दिन बड़ी हँसी खुशी बीतता है,उनकी बीवी अच्छे पकवान भी बनाती है और ढ़ेर सारा प्यार भी उड़ेलती है।अब यह काल चक्र है या इनकी अपनी किश्मत यह तो उपर वाला ही जानता है,मगर कल सुबह हमारे और आपके साथ क्या होगा इस पर अभी से सोचना होगा.......।

मंगलवार, 10 मार्च 2009

"होली"

अमे यार,आज होली खेली जायेगी हम सोच रहे है कि हमहू एक दो पुराना कपड़ा निकाल लें ,काहे से कि होली में कपडों की सामत आ जाती है ....
पिछले साल होली में नया कपड़ा पहिन कर निकले तभी मोहल्ले के लौंडों ने रंग लगाने के लिए दौड़ा लिया रंग लगाने के साथ -साथं मेरे कपड़े भी फाड़ दिए,हमको अपने रंगे जाने का दुःख नहीं था मगर अपने नए कपड़े फट जाने का बहुत दुःख था ,इसलिए अबकी बार हम पहिले से सतर्क हो जाना चाहते हैं...........।
सुना है,अबकी चुनाव में मुलायम सिंह पैसा बाँट रहे हैं,अमे अपने हियाँ के नेता ससुरे तो एहु नहीं करते हैं,अगर ससुरे पैसा बांटते तो पौवा का काम चल जाता,अबकी बीवी से मांगे बिना होली अच्छे से मना लेते ....।
भाई धीरज रखो बहुत देर नहीं हुई है ,अभी भी मिलने का पूरा -पूरा चांस हैं।चलो भइया आप कह रहे हैं तो हम मान लेते है,वैसे हमारा भी मन कह रहा है कि अबकी होली अच्छी बीतेगी,बस इन लौंडों से किसी तरह बच जायें तो क्या कहने।तभी लौंडों की टोली को अपनी तरफ़ बढ़ते हुए देखकर बनवारी बोले .'अबे भाग रे भाग देख ससुरे फ़िर से रंग लिए इधरै आ रहे हैं...................'
'कबीर सा रराआआआआआआअ रराआआआआआआअरराआआआआआआअ रराआआआआआआअ ............