गुरुवार, 7 मई 2009

आखिर कब तक !

आखिर कब तक ड्राइंगरूम पालिटिक्स चलती रहेगी.
आखिर कब तक हम एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराते रहेंगे.
आखिर कब तक लोग एक दूसरे के खून के प्यासे रहेंगे.
आखिर कब तक संसद में कुर्सियां चलती रहेंगी.
आखिर कब तक घोटाले होते रहेंगे.
आखिर कब तक नेताओं पर बेकार में जूते फेंके जाते रहेंगे.
आखिर कब तक कुर्सियां बिकती रहेंगी.
आखिर कब तक लोग भूखों मरते रहेंगे.
आखिर कब तक वजीफे बांटकर काहिल जिन्दा रखे जायेंगे.
आखिर कब तक बेटियां सिसकती रहेंगी.
आखिर कब तक लोकतंत्र के नाम पर तानाशाही चलती रहेगी.
आखिर कब तक जनता असहाय बनकर लुटती रहेगी.
क्या भारत माता के सपूतों का खून ठंढ़ा पड़ गया है.
क्या झांसी की रानी पैदा नहीं होती.
क्या गुठलियां खाकर मरने वाले हमें याद नहीं आते.
क्या हरिश्चंद्र और राम हमारी रगों में नहीं दौड़ते.
यह सब कुछ केवल सोचने और भाषण देने से नहीं बदलेगा
इसके लिए हमें एकजुट होकर अपनी ताकत को भांपकर
अपनी मातृभूमि की रक्षा का प्रण लेकर मैदान मेंउतर
पड़ना होगा तभी कुछ हो पायेगा,तभी हमारा भारत फिर
से सोने की चिड़िया और विवेकानन्द के सपनों का देश बन पायेगा..

1 टिप्पणी:

  1. जब तक नहीं करेंगे मिलकर अन्याय के खिलाफ शोर.
    जब तक ज़िंदा रहेंगें राजनीतिक चोर.
    जब तक नहीं लगाएंगे मिलकर ज़ोर.
    तब तक
    हां
    तब तक नहीं नाचेगा खुशियों का मोर.
    नहीं नाचेगा खुशियों का मोर.

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