शनिवार, 25 जुलाई 2009

"सूर्य ग्रहण की यात्रा"

पता चला सदी का पहला सूर्यग्रहण लगने वाला है और यह ग्रहण फिर ३२ साल बाद लगेगा । तो हमने उसे अपने कैमरे में कैद करने की प्लानिंग शुरु कर दी मगर उस गंतव्य तक कैसे पहुँचा जाए एक बड़ी समस्या थी ।इस समस्या से निपटने की हमने कोशिस शुरु कर दी .हमारे कई जाने माने और उम्मीद लगने वाले लोगों से हमने अपने साथ ले जाने की प्रार्थना की मगर उन्होंने मना कर दिया.थक हार कर हम लोगों ने स्वतः वहां जाने का निर्णय लिया जहाँ से सूर्य ग्रहण देखा जा सकता था ... ।
ग्रहण से एक दिन पहले हम बनारस पहुँच गए जबकि हमारे सीनियर लोग प्रयाग की पवन भूमि पर उम्मीद लगाये बैठे रहे...हमने एक परिचित की शरण ली। वहां हमारी बड़ी आव भगत हुई और रात में छत पर ही सोने की व्यवस्था हुई.हम अलार्म लगाकर जल्दी सो गए क्योंकि सुबह उठकर सूर्यग्रहण की फोटो जो लेनी थी.बिना किसी तैयारी के अचानक मौसम में परिवर्तन हुआ और हमारी आशाएं धूमिल होने लगीं तभी दस मिनट के बाद मौसम फ़िर सही होने लगा और सूरज की रोशनी फ़ैल गई हमें लगा की अब हम ग्रहण देखने वालों की श्रेणी में आने वाले हैं तभी अँधेरा होने लगा .हम खुश हो गए क्योंकि ग्रहण की प्रक्रिया शुरु हो गई थी..हम विशिष्ट बनने की श्रेणी में थे क्योंकि हम ग्रहण देखने जा रहे थे .जैसे ही चंद्रमा ने सूर्य को पूरी तरह से ढका हमने वो नजारा देख लिया जिसकी हमे प्रतीक्षा थी ..जल्दी जल्दी हमने अपने कैमरे मंगाकर कुछ फोटो भी खिंची .हमारी खुशी का ठिकाना नही था क्योंकि हमने वो सभी नज़ारे देखे और कैद किए थे जिसकी कई दिनों से चर्चा हो रही थी . हमने अपनी खुशी बाँटने के लिए अपने मित्रों से बात की .मित्रों ने बताया की प्रयाग के फोटोग्राफरों को ग्रहण नहीं दिखा क्योंकि मौसम ने उनकीं तमन्नाओं पर ग्रहण लगा दिया ..वो न ही सूरज को देख सके न ग्रहण को कैद कर सके .हमें अपने उत्साह और निर्णय पर खुशी हो रही थी क्योंकि बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले याद आ रहा था ।लेकिन हमें विस्वास हो गया की इश्वर उनकी सहायता जरुर करता है जो दिल में कपट नहीं रखते हैं..जिन लोगों ने हमारी इच्छाओं पर ग्रहण लगाने की कोशिश की वो ख़ुद ग्रहण के शिकार हो गए..

1 टिप्पणी:

  1. डेल्ही हाई कोर्ट ने एक्ट ३७७ को मंजूरी क्या दी सूरज और चाँद भी अपने को न रोक सके और धरती बेचारी बस देखती रही
    जी हाँ प्रभात जी ऐसा ही कुछ नजारा था सूर्य ग्रहण का पर हम तो चूक गये इस अद्भुद नज़ारे को कैद करने से. उस समय मैंने सोचा की काश आज मै भी अलाहाबाद में होता पर बाद में पता चला की वहां के लोग भी वंचित रह गये प्रकृति के इस नायब नज़ारे से.
    सुन्दर संस्मरण

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