शुक्रवार, 18 मार्च 2011

"वो दो हजार "

दे दना दन मूबी में हीरो कहता है- तू पैसा- पैसा करती है, पैसे पर क्यूँ मरती है॥
ये गाना रिश्तों की असलियत को उजागर करता है। । यह भी पता चलता है की पैसे की अहमियत कितनी ज्यादा है॥ हम बेहतर जानते हैं की आज के भौतिकवादी युग में पैसा हर किसी के लिए अमूल्य चीज हो गयी है.
हो भी क्यों ना, एक रूपया कम होने पर दुकानदार सामान देने और गाड़ी वाला आगे ले जाने से मना कर देता है। ऐसे में अगर बात दो हजार रुपयों की हो, पैसे देने वाला पुराने ज़माने की फिल्मो के लाला की तरह हो, फिर उससे पैसे निकलवा पाना भी bahut मुस्किल kaam है।
जनाब कुछ इसी तरह की उधेड़ बुन में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पीजेबीसी के 61 स्टुडेंट्स है, जो दो साल पहले जमा की गयी कासन मनी के लिए डिपार्टमेंट के चक्कर लगा रहे है। बाबू को फ़ोन करने पर जवाब मिलता है आप का पैसा जल्दी ही मिल जायेगा दस्तखत होना बाकी है लेकिन बाबू कोई टाइम नहीं।
उसकी इन हरकतों ले तंग आये हमारे एक मित्र का कहना है- हम केवल इसी आश में जिन्दा हैं कि हमारे हिस्से के वो 2000 रुपये जल्द ही मिलेंगे जिन्हें २०१० में देने का वडा किया गया था । उनका कहना है कि बिना 2000 हजार लिए मर गए , फिर उनकी आत्मा भटकती रहेगी, वो भी सेंटर encharge के आवास के आस - पास । हाय रे वो २००० हजार रुपये जो न ही चैन ले जीने देते हैं न मरने.....

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